अखबार का कीड़ा मुनमुन
उस लड़की का
खबरों से
और
अखबारों के अनगिनत शब्दों से
एक रिश्ता है
वे हर रोज़
सुबह से शाम तक
अंग्रेजी के अखबारों में
खबर दर खबर
पन्ना दर पन्ना
लकीरे खींचती है
कुछ निशानियां उकेरती है
और
कुछ शब्द बुनती है
फिर
अनन्त में देख
कुछ बुदबुदाती है
कुछ भूल जाने के भय से
एक छात्रा की तरह
डरी-सहमी होती है
वे,
खबरों को पढ़ती है,
रटती है।
अखबारों पर पड़ी तारीखें
कोई मायने नहीं रखती
वे सप्ताह भर के पुराने अखबार
इस तरह पढ़ती है
जैसे
आज सुबह ही अखबारवाला
उसके दरवाजे़
ताजा अखबार पटक गया था।
खबरों से
और
अखबारों के अनगिनत शब्दों से
एक रिश्ता है
वे हर रोज़
सुबह से शाम तक
अंग्रेजी के अखबारों में
खबर दर खबर
पन्ना दर पन्ना
लकीरे खींचती है
कुछ निशानियां उकेरती है
और
कुछ शब्द बुनती है
फिर
अनन्त में देख
कुछ बुदबुदाती है
कुछ भूल जाने के भय से
एक छात्रा की तरह
डरी-सहमी होती है
वे,
खबरों को पढ़ती है,
रटती है।
अखबारों पर पड़ी तारीखें
कोई मायने नहीं रखती
वे सप्ताह भर के पुराने अखबार
इस तरह पढ़ती है
जैसे
आज सुबह ही अखबारवाला
उसके दरवाजे़
ताजा अखबार पटक गया था।
(अपनी दोस्त मुनमुन के लिए, जो अखबारी कीड़ा है)
बहुत बढ़िया साहब, वाह
जवाब देंहटाएं---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
i just saw ur blog while surfing
जवाब देंहटाएंha ha ha
this goes for me as well
good work
बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद दिखे?
Bahut Achhe. Apni bhawanaaon ko shabdon mein bakhoobi dhaal diye. nice poem
जवाब देंहटाएंएक बेहद ही नीरस बात को बहुत ही बेहतरीन तरीक़े से चाशनी में डुबोया है आपने।
जवाब देंहटाएं