ये घड़ी...
चुभती-चुभती सी ये घड़ी है,
हवा, पेड़ की शाखा पर पड़ी है.
वहां वो इंतजार में खड़ी है,
यहां जिंदगी, मौत से लड़ी है.2
जिसमें हर पल भावनाएं उबलती हैं
और एक दिन वो चरम पर होती हैं
फिर एक ज्वाला निकलती हैभावनाएं आग की लपटों की तरह
धधकती हुई बारह निकलती है
मैं झुलस जाता हूं
अपनी ही इन लपटों में
जब एकदम शांत हो जाता हूं
जैस सुसुप्त है कोई ज्वालामुखी..
"...मेरा शरीर एक ज्वालामुखी है
जवाब देंहटाएंजिसमें हर पल भावनाएं उबलती हैं..."
क्या बात है!