रिश्ते की डोर..
इस कदर खोया रहा
कि कस के पकड़ी हुई
रिश्ते की डोर कब फिसल गई
मालूम ही ना चला...
रिश्तों का अचानक टूट जाना
जिंदगी की शायद नियति बन चुका है
मैं इन्हें मुगालतो में जीता रहा कि
रिश्तें प्रेम के धरातल पर टिकते हैं
हर बार पैर तले जमीन खिसकती रही है मेरी...
बहुत बहुत बहुत बढ़िया और शानदार कविता .......
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