मेरी प्रेम कविता
आज की रात,
जो चाँद निकला है..
खुले आकाश में,
दाग-सा लगता है..
और
चुभता है सीने में..
क्र्योंकि
वो सपने जो देखे थे
हमने तुम्हारे साथ
और
जो फासला था
तेरे-मेरे बीच,
उस रात मिट-ही गया था
खामोशी के अंधेरों में
फिर
ढेरों बातें जो तुमने,
कही थी,
और
हमने सुनी थी
कभी दिन के उजालों में
कभी रात के सन्नाटों में
अब गुंजती हैं
हवाओं का साज़ बनकर
आज उन्हें सिर्फ
मैं सुन सकता हूं
क्योंकि तुमने तो उन्हे
कभी संजोया ही नहीं
और हां
वे रास्ते भी हैं
जो मेरी राह का
रोड़ा बन रहे हैं आज
जहां से गुजरे थे हम-तुम..
अब वे रास्ते
मेरी स्मृतियों में
बेवजह
तुमको ले आते हैं..
और मुझे
चुभने लगता है चांद
चुभने लगती है हवा
चुभने लगती हैं यादें
चुभने लगती वे तस्वीरे
और हर वो चीज
मेरे सीने में गढ़ने लगती है,
जिसका वास्ता तुमसे था
तुम बताओ
क्या करुँ, क्या करुँ?
अपनी इस छोटी-सी
मासूम मोहब्बत का....
फ्रेंकलिन निगम
जो चाँद निकला है..
खुले आकाश में,
दाग-सा लगता है..
और
चुभता है सीने में..
क्र्योंकि
वो सपने जो देखे थे
हमने तुम्हारे साथ
और
जो फासला था
तेरे-मेरे बीच,
उस रात मिट-ही गया था
खामोशी के अंधेरों में
फिर
ढेरों बातें जो तुमने,
कही थी,
और
हमने सुनी थी
कभी दिन के उजालों में
कभी रात के सन्नाटों में
अब गुंजती हैं
हवाओं का साज़ बनकर
आज उन्हें सिर्फ
मैं सुन सकता हूं
क्योंकि तुमने तो उन्हे
कभी संजोया ही नहीं
और हां
वे रास्ते भी हैं
जो मेरी राह का
रोड़ा बन रहे हैं आज
जहां से गुजरे थे हम-तुम..
अब वे रास्ते
मेरी स्मृतियों में
बेवजह
तुमको ले आते हैं..
और मुझे
चुभने लगता है चांद
चुभने लगती है हवा
चुभने लगती हैं यादें
चुभने लगती वे तस्वीरे
और हर वो चीज
मेरे सीने में गढ़ने लगती है,
जिसका वास्ता तुमसे था
तुम बताओ
क्या करुँ, क्या करुँ?
अपनी इस छोटी-सी
मासूम मोहब्बत का....
फ्रेंकलिन निगम
क्या खूब कहा आपने सर....मज़ा आ गया...
जवाब देंहटाएं