एक अजब-सी उलझन में,
कब से उलझा हूं मैं।
नीले आसमां के सितारों में
अपने हिस्से के तारे गिन रहा हूं मैं
जिंदगी की तेज़ हवाओं में
तिनकों को समेट रहा हूं मैं
बस कुछ उम्मीदे बाकी है
इन्हीं उम्मीदों के सहारे जी रहा हूं मैं.....
कब से उलझा हूं मैं।
नीले आसमां के सितारों में
अपने हिस्से के तारे गिन रहा हूं मैं
जिंदगी की तेज़ हवाओं में
तिनकों को समेट रहा हूं मैं
बस कुछ उम्मीदे बाकी है
इन्हीं उम्मीदों के सहारे जी रहा हूं मैं.....
बहुत खूब !खूबसूरत रचना,। सुन्दर एहसास .
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं.