उम्मीदें जब टूटने लगी
और
सपनों में दरार नज़र आने लगी।
चेहरें पर उदासी की झुर्रियां
उभर आयी थीं।
मैं डरने लगा,
कहीं बिखर न जाऊं?
पतझड़ के पीले-पीले पत्तों की तरह
कहीं सड़ न जाऊं?
ठहरे हुए पानी की तरह।
मैं डरने लगा
और
चौखट से बाहर कदम रख दिए
घने अंधरे में।
एक परछाईं की तलाश में।
जो हाथ थाम लेगी,
जो गले लगा लेगी,
कुछ पल के बाद
परछाईं भी लुप्त हो गयीं।
मैं डरन लगा।
आसपास के विशाल पेड़ों से,
गुर्राते झींगुरों से,
घुरते चांद से,
मैं अकेला था।
मैं डरने लगा।
तभी
किसी झरोखे से झांकता
रोशनी का एक तिनका नज़र आया।
मैंने एक गहरी सांस ली
और
रोशनी के सपने फिर से देखने लगा
उम्मीदें फिर से जागने लगी।
और
सपनों में दरार नज़र आने लगी।
चेहरें पर उदासी की झुर्रियां
उभर आयी थीं।
मैं डरने लगा,
कहीं बिखर न जाऊं?
पतझड़ के पीले-पीले पत्तों की तरह
कहीं सड़ न जाऊं?
ठहरे हुए पानी की तरह।
मैं डरने लगा
और
चौखट से बाहर कदम रख दिए
घने अंधरे में।
एक परछाईं की तलाश में।
जो हाथ थाम लेगी,
जो गले लगा लेगी,
कुछ पल के बाद
परछाईं भी लुप्त हो गयीं।
मैं डरन लगा।
आसपास के विशाल पेड़ों से,
गुर्राते झींगुरों से,
घुरते चांद से,
मैं अकेला था।
मैं डरने लगा।
तभी
किसी झरोखे से झांकता
रोशनी का एक तिनका नज़र आया।
मैंने एक गहरी सांस ली
और
रोशनी के सपने फिर से देखने लगा
उम्मीदें फिर से जागने लगी।
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