गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

देख, लूटती अस्मत बच्चियों की..

राम भी रोए
कृष्ण भी रोए
देख, लूटती अस्मत
बच्चियों की..
परंतु,
राम-कृष्ण के समक्ष तो
धर्म-संकट था।
एक ओर
मासूम बच्चियां हैं
तो दूसरी तरफ
जय घोष लगा था
हिंदुत्व का।
सो,
चुप रहे,
देख, लूटती अस्मत
बच्चियों की..
कृष्ण की आंखों में 
चीरहरण के दृश्य थे 
परंतु,
न हाथ उठा, न दामन निकला
जो बच जाती 
अस्मत बच्चियों की।
पुरुषोत्तम राम भी,
सोच रहे थे खड़े-ख़डे
अब, होगी अग्निपरीक्षा
इन बच्चियों की।
कहीं मंदिर का प्रागंण था
तो कहीं दानव का बिस्तर था
न काली आयी, न दुर्गा आयी
देख, लूटती
अस्मत बच्चियों की।
चीख रहीं थी,
पुकार रहीं थी,
जब लूटी अस्मत बच्चियों की।

(हर उस बच्ची के लिए जिसकी अस्मत लूटी जा रही है।)

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