रविवार, 5 जनवरी 2020



उसके शहर की
गलियों में..
सड़कों पर..
पीठ पर बस्ता टांगे,
जब स्कूल जाते होंगे..
कुछ मासूम से बच्चे।


उसके शहर के
बाज़ार में..
फूटपाथ पर..
जब सामान खरीदती होंगी..
कुछ पर्दानशीं औरतें।

उसके शहर के
दफ्तरों में..
दुकानों पर..
जब अपने कामों में मशरुफ होंगे
कुछ हम जैसे औरत-मर्द।

तब तुम
उनके शहरों पर
जब चाहों,
मिसाइलों चला दो..
जब चाहों
आग लगा दो..

तुझे मालूम है
कि उसके शहर में भी
इंसां ही बसते हैं..
और
तेरे बड़े-बड़े बमों से
इंसा ही मरते हैं

(अमेरिका, इज्ररायल, चीन, रुस जैसे देशों की दादागिरी के खिलाफ। हर उस देशे के खिलाफ है ये कविता जो बम बरसाकर, आतंकवाद खत्म करने और दुनिया में शांति का प्रचार करने का नाटक करते हैं.)


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