मंगलवार, 28 जनवरी 2020

मां की चिंताएं



मुझे सर्द मौसम बहुत पसंद था।

आजकल मां की हालत को देख कर वक्त की तुलना करता हूं। इस सर्द मौसम में खांसी से बेहाल हैं। कमजोरी, बीमारी उन्हें तोड़े जा रही है।
समझ नहीं आता क्या करुं?
लगता है जैसे उनकी सेवा में पूरी या कोई कमी रह गयी है?
सेवा करना चाहता हूं, लगता है कर नहीं पा रहा।

मां अब भी अपने को मजबूत मानती हैं, उन्हें लगता है कि वे अब भी सब कर सकती है। कहती हैं कि पूरी उम्र तो किया है।
कैसे समझाऊं उन्हें?

मां को खांसी से परेशान देखकर इस मौसम से ही नफरत सी हो रही है। खत्म क्यू नहीं हो रही सर्दियां? बचपन में कभी सर्द दिनों और पॉजिटीव धूप का इंतजार रहता था। लेकिन अब नहीं रहा।

इतनी बीमार होने के बाद भी, उन्हें सुबह उठने की चिंता रहती है। बच्चों का नाश्ता बनाने की चिंता रहती हैं। लंच में ऑफिस क्या लेकर जाऊंगा? ये चिंता रहती हैं। वीकली ऑफ वाले दिन भी दोपहर को क्या खाऊंगा? ये सवाल कई बार पूछती है। शाम की चाय की चिंता रहती है। अलमारी में कपड़े ठीक से रखे हैं या नहीं, ये चिंता रहती है। कपड़े,सूख गए तो उन्हें उठाकर तय कर सलीके से रखने की चिंता रहती है। घर का कोना-कोना साफ रहे, साफ ऱखती हैं, इसकी चिंता रहती है। मेहमानों की चिंता करती है। घरवालों, रिश्तेदारों की चिंता करती हैं. 

अब लगने लगा है कि उनकों सर्द मौसम की खांसी, बीमारी, कमजोरी नहीं बल्कि चिंता खा रही है।

उनसे हर विषय पर बात कर चुका हूं, समझा चुका हूं। पर वो चिंता नहीं छोड़ती। उनके अपने लॉजिक है।

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