सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

इंतजार...



आओ!
मेरी मुफलिसी में
थोड़ी देर, साथ बैठो!
किसी वीरान-सी
जगह पर,
पसरी खामोशी की तरह!

आओ!
मेरी मुफलिसी में
कुछ इस तरह से!
जैसे,
पतझड़ आता है,
उदासी लिए!

आओ!
मेरी मुफलिसी में
एक बार!
कड़कती धूप में,
बरहना सर!
किसी छांव की तरह

आओगे,
तो पूछेंगे!
क्या याद है, तुमको?
वो मेरा चश्मा,
वो मेरी किताबें,
वो मेरा टू-व्हीलर
वो तेरी-मेरी राह

क्या याद है, तुमको?
वो पुराना-सा घर।
वो पुराना-सा सब कुछ!

आओ!
मेरी मुफलिसी में
एक बार फिर से!

- फ्रेंकलिन निगम

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