जहां मैं अकेला, उदास नहीं रहता।
समंदर की ठंडी हवाएं, सुबह
मां के स्पर्श की तरह उठा देती हैं मुझे।
धूप, रोज़ाना खिड़की से झांककर
हाल पूछ लेती है, हमसफर की तरह।
दिनभर पंछियों के चहचहाने की आवाज
बच्चे के शोर का अहसास दिलाती है मुझे ।
कभी-कभार शहर में टहल आता हूं
दो बात भी कर लेता हूं किसी अनजान से।
जब पूछ लेता है कोई, मुसाफिर हो दोस्त,
तो कह देता हूं इस शहर में घर है मेरा
Wah bahut khoob
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