शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

*॰॰॰॰॰॰॥*अपराजित*॥॰॰॰॰॰॰॰*

मुझे घेर रखा है इस अँधेरी रात ने,

जो इस छोर से उस छोर तक गहरी है,

मैं धन्यवाद देता हूं, उन देवों को

अपनी अटल आत्मा के लिए।


जिन हालातों की डरावनी जकड़ में

न घबराया हूं और न चीख कर रोया 

किस्मत की मार से,

मेरा माथा लहूलुहान है, मगर झुका नहीं।


इन आंसुओं और क्रोध से परे 

धुंधली-सी मौत का भयानक खौफ,

लेकिन उस डरावने वक्त ने

हमेशा निडर पाया है और निडर ही पायेगा।


मुक्ति का रास्ता चाहे जितना जटिल हो, 

हाथों की लकीरों में चाहे जितनी सज़ा लिखी हों।

अपने भाग्य का स्वामी केवल मैं हूँ,

अपनी आत्मा का कप्तान केवल मैं हूँ।

*(Invictus translated into Devanagri by Franklin Nigam)*

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें