शनिवार, 26 फ़रवरी 2022

*युद्ध*


युद्ध, कई शहर निगल जाता है

लाखों जाने खाक कर देता है

हज़ारों मासूम अनाथ होते हैं

हज़ारों विधवाएं विलाप करती हैं

बम-बारुद अथाह बरसते हैं

शहर धुआं-धुआं होता है

इमारतें राख-राख होती हैं

लाशों का अंबार लगता है

तब जाकर 

युद्ध के दानव का 

पेट भरता है...

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