युद्ध, कई शहर निगल जाता है
लाखों जाने खाक कर देता है
हज़ारों मासूम अनाथ होते हैं
हज़ारों विधवाएं विलाप करती हैं
बम-बारुद अथाह बरसते हैं
शहर धुआं-धुआं होता है
इमारतें राख-राख होती हैं
लाशों का अंबार लगता है
तब जाकर
युद्ध के दानव का
पेट भरता है...
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