बुधवार, 16 मार्च 2022

मैंने सोचा तुम आओगे ...

 शाम,
मुंडेर पे कौवा चिल्लाया था
पुरवाई का एक झोंका आया था
मैंने सोचा तुम आओगे...

रात,

तारों में बैचेनी बड़ी थी
रात की रानी खूब महक रही थी
मैंने सोचा तुम आओगे...
 
सुबह,
फूलों पर भंवरां मंडरा रहा था
पत्ता-पत्ता खिलखिला रहा था
मैंने सोचा तुम आओगे...
 
दोपहर,
चौखट से धूप झांक रही थी
बिस्तर पर सीलवट पड़ी थी
मैंने सोचा तुम आओगे...

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