शाम,
मुंडेर पे कौवा चिल्लाया था
पुरवाई का एक झोंका आया था
मैंने सोचा तुम आओगे...
रात,
तारों में बैचेनी बड़ी थीरात की रानी खूब महक रही थी
मैंने सोचा तुम आओगे...
सुबह,
फूलों पर भंवरां मंडरा रहा था
पत्ता-पत्ता खिलखिला रहा था
मैंने सोचा तुम आओगे...
चौखट से धूप झांक रही थी
बिस्तर पर सीलवट पड़ी थी
मैंने सोचा तुम आओगे...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें