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गठरी

वर्षों पहले

घर के

मचाने पर,

मां ने

पुरानी-सी

सफेद चादर में

ख्यालों,

ख्वाबों,

और ख्वाहिशों को

गठरी में

बांध कर रखा था।


वर्षों बाद

गठरी की गांठे

आज खुली हैं


ख्यालों पर

झुर्रियां-सी

पड़ गयी हैं


ख्वाबों पर

धूल-सी

जम गयी है


ख्वाहिशें

अधपकी-सी

अब भी पड़ी हैं


मां ने

फिर से

गठरी को

बांधकर

मचाने पर

वहीं

रख दिया है।

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