शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

दोषी कौन ?

पांच खबरे नीचें क्रम में रखी हैं। आप चाहें तो पढ़ लीजिए और चाहें तो सड़क पर पड़ी कोई लाश समझ कर इंग्नोर कर दीजिए। क्या फर्क पड़ेगा आप पढ भी लेंगे और न भी पढ़े तो। लेकिन मैं अपने मन की बात तो लिख ही देता हूं. ये खबरें पिछले 15 दिनों में चर्चा में थी. मैंने  बस इतना किया कि इन पांचों खबरों को एक साथ रखकर विचार विमर्श करने लगा। लेकिन किसी पर भी दोष नहीं मढ़ा। न सरकार पर, न प्रशासन पर, न पुलिस पर, न आप पर न खुद पर। बस सोचता रहा कि आखिर इन लाशों के साथ हुइ लापरवाही का दौषी कौन है? आप खुद तय कर लें।

खबर नंबर -1
कांधो पर ढोयी पत्नी की लाश
पिछले दिनों भारतीय खबरिया चैनलों ने ओडिशा के एक ग़रीब आदिवासी दाना मांझी की एक ऐसी तस्वीरें दिखायी जो काफ़ी समय तक मन को झकझोरती रही. दाना मांझी अपने कंधे पर अपनी पत्नी की लाश उठाए हुए करीब बारह किलो मीटर तक पैदल चले. पत्नी का टीबी से देहान्त हो गया था और उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह शव को घर ले जाने के लिए एक एंबुलेंस का प्रबंध कर पाते. मांझी ने अस्पताल प्रशासन से मदद मांगी थी जो नहीं मिली। अब बस यही एक चारा था कि वह अपनी पत्नी की लाश को कांधो पर उठा कर अपने गांव की तरफ चल पड़े।

खबर नंबर - 2
लाश को कमर से तोड़ा और एंबुलेंस नहीं आई तो बांस पर लटकाकर ले गए
ओडिशा के बालासोर में अस्पताल कर्मचारियों द्वारा एक महिला की लाश को बांस पर लटकाकर ले जाने का मामला भी सामने आया. घटना सोरो रेलवे स्टेशन की है, जहां मालगाड़ी की चपेट में आने से 80 वर्षीय विधवा सालामनी बेहेरा की मौत हो गई थी. जिसके बाद उनकी लाश को सोरो कम्यूनिटी सेंटर ले जाया गया. घटना की सूचना मिलने के करीब 12 घंटे बाद जीआरपी लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाने पहुंची, लेकिन वहां भी एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं थी. ऐसे में कर्मचारियों ने कम्यूनिटी सेंटर के वृद्धा की लाश ले जाने के लिए, पहले उसकी हड्डियों को कमर से तोड़ा फिर उसे कपड़े में लपेटकर, बांस पर टांगकर पोस्टमार्टम के लिए ले गए.

खबर नंबर - 3
2 घंटे तक सड़क पर पड़ी रहीं लाश, नहीं पहुंची एम्बुलेंस
इस खबर के कुछ दिन बाद एक खबर जयपुर से आयी। आधी रात सिंधी कैंप के पास स्टेशन रोड पर एक लाश पड़ी मिली। नवजीवन कॉम्प्लैक्स के सामने करीब साढ़े 12 बजे कोई वाहन सड़क पार करने वाले को टक्कर मारकर भाग गया. आधे घंटे तक किसी ने पुलिस को सूचना नहीं दी। करीब 1 बजे एक राहगीर ने कंट्रोल रूम में फोन किया तो चेतक वैन और दुर्घटना थाना पश्चिम की टीम पहुंची और शव को सड़क किनारे रख दिया। घटनास्थल पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने शव को मुर्दाघर पहुंचाने के लिए पुलिस लाइन से एम्बुलेंस भेजने को फोन किया। वहां से करीब 1 किलोमीटर की दूर से एम्बुलेंस आने में डेढ़ घंटा लग गया। बड़ी मशक्क्त के बाद ढाई बजे एम्बुलेंस आई। जब पुलिसकर्मी शव लेकर रात करीब पौने 3 बजे मुर्दाघर पहुंचे और खुद ही शव को डीप फ्रिज में रखकर आए।

खबर नंबर - 4
3 साल की मासूम की लाश रात भर गोद में लिए बैठी रही महिला
मामला मेरठ के जिला अस्पताल का है। जनपद बागपत के गांव निवाडा की रहने वाली महिला अपने बुखार से पीड़ित 3 साल की मासूम को लेकर मेडिकल कॉलेज पहुंची, जहां से उसे जिला अस्पताल भेज दिया गया। लेकिन यहां उसका समुचित इलाज नहीं हुआ जिससे बच्ची की मौत हो गई। बच्ची की लाश को घर तक पहुंचाने के ले टैक्सी वाले ढाई हजार रुपए मांग रहे थे। लेकिन महिला के पास इतने पैसे नहीं थे। अस्पताल प्रशासन ने महिला की कोई मदद नहीं की और महिला पूरी रात अपने 3 साल की मासूम को लेकर जिला अस्पताल में इमरजेंसी के गेट पर बैठी रही।

खबर नंबर - 5
बेटे की लाश लिए भटकता रहा पिता, सीएचसी की एंबुलेंस भाग गई
ये किस्सा गोंडा का है। एक पिता, अपने बेटे की लाश कंधे पर लाद कर जिला अस्पताल में भटकता रहा। वह लोगों से मदद मांगता रहा। बच्‍चे के मौत की जानकारी मिलते ही सीएचसी से आई एंबुलेंस को लेकर ड्राइवर भाग गया था। साथ ही ड़ॉक्टरों ने बेटे की लाश इमरजेंसी के बाहर ले जाने का हुक्म सुना दिया था। कभी बेटे की लाश शिवपूजन के कंधों पर होती तो कभी पत्नी सुनीता उसे गोदी में उठा लेती थी। वह मदद के लिए अस्पताल परिसर में इधर से उधर घंटों भटकता रहा। आखिरकार इमरजेंसी रूम के बाहर लोगों की भीड़ ने चंदा इकट्ठा किया तब दो घंटे बाद शव को रिक्शे पर भि‍जवाया गया।

बस आखिर में इतना ही कि असंवेदनशीलता. अमानवीयता की पराकाष्ठा और अंधे-बहरे-कुपोषित समाज में जिंदा हूं मैं.

फ्रेंकलिन निगम

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