मेरे घर का रास्ता यहीं से होकर जाता है आगे एक चौराह है थोडा सा दाएं जाना है फिर एक नाला है उसे पार कर जाना है थोडा सा आगे और आगे जाना है किनारे पे बसी एक बदनाम सी बस्ती है बस यही मेरी हस्ती है मेरे घर का रास्ता नाले के उस पार से रहमत अली के सब्जी के ठेले से शमशान तक यूं ही चला जाता है चौराहे से दाएं मुडी हुइ सडक के साथ साथ कुछ उजडी सी कुछ बसी सी ये जो बस्ती है यही मेरी हस्ती है मेरे घर का रास्ता पहले मोड़ पे पहचान लिया जाता है आगे सार्वजनिक शौचालय का अवशेष है जिसमें शौचालय को छोड़ कर बाकी सब शेष है जिसकी दीवार पर लिखा है प्रयोग करना मना है जो शेष है उसमें शौचालय का गेट है और खुला पड़ा पूरा मैदान है कचरा जो सड़क तक फैल आया है कचरे के ढे़र पे सुअरों कुत्तों और गायों का मेला है बस वहीं मेरी बस्ती है यही मेरी हस्ती है मेरे घर का रास्ते की तीसरी गली में बीचों बीच बहती छोटी सी नाली है बीच में ही खड़ी छेञपाल की उधड़ी हुइ चारपाइ दीवार से सटी चंदा की साइकिल किसी का रास्ता नहीं ...
मैंने सुना है.. वे हंसती थी खिलखिलाती थी और खुले आसमान में दूर तक उड़ जाती थी.. मैंने सुना है.. उसे किसी ने कभी, उदास नहीं देखा.. वे सन्नाटों में और तन्हाई में भी जिया करती थी.. लेकिन उस रात वे चिखी-चिल्लायी , तड़पी और फड़फड़ायी भी होगी.. और एक सुबह बदहवासी में उसके चेहरे पर उदासी पसर आयी.. उसके जिस्म पर खरोंचे थी, भय था, ज़ख्म थे.. मैंने सुना है उसने कहा था वो जीना चाहती है.. इसलिए उसने ज़ोर-ज़ोर से, सांसे लेने का प्रयास भी किया .. वे उठ खड़ी होना चाहती थी लेकिन लड़खड़ा गयी.. मैंने सुना है वे जीते-जीते उदास मर गयी.. 29 दिसम्बर 2012 (16 दिसम्बर 2012 की रात, गैंगरेप की भुगतभोगी लड़की के नाम.. )
सबसे मुश्किल था अपने आप को अपने से बांध कर रखना.. खुद को खुद से छुपाके रखना.. और आज जब मिला हूं, जिंदगी के चौराहे पे अपनी ही परछाई से.. कुछ बदला-सा दिखने लगा है चेहरा अपना..
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