शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

यूं हुआ था शिमला समझौता


(इस लेख को हिंदी पत्रिका प्रथम प्रवक्ता के जुलाई अंक में भी पढ़ सकते हैं।)
2-3 जुलाई 1972 की आधी रात को एशिया के दो देश भारत और पाकिस्तान मिलकर एक ऐसा अध्याय लिख रहे थे जिसे आज शिमला समझौता कहा जाता है। दोनों देशों के बीच हुए इस समझौते को 41 साल पूरे हो रहे हैं। 2 जुलाई 1972 की रात प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो एक टेबिल के सामने साथ-साथ बैठे थे। तारीख बदलकर 3 जुलाई हो चुकी थी और घड़ी में 12 बजकर 40 मिनट हो रहे थे। ये वो पल था जब भारत-पाकिस्तान के बीच एक समझौते के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए जा रहे थे। शिमला के ताजगी भरे माहौल में दोनों देश के प्रतिनिधियों ने शांति और विश्वास के लिए लिखित आश्वासन दिया।

41 साल पहले पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने ही भारत के सामने शांतिवार्ता का प्रस्ताव रखा था। जिसे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी स्वीकार कर लिया। दरअसल वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच एक बड़ा युद्ध लड़ा जा चुका था, 93 हजार पाकिस्तानी फौजी भारत में युद्धबंदी थे और पाकिस्तान से टूट कर पूर्वी पाकिस्तान भी बंगलादेश बन गया था। पूर्वी पाकिस्तान का आंदोलन, मुक्तिवाहिनी को भारत का समर्थन, 1971 के युद्ध में करारी हार और बंगलादेश का उदय- यही सब वे कारण थे जिनकी वजह से भारत-पाकिस्तान के रिश्ते बेहद नाजूक दौर से गुजर रहे थे। विश्वास बहाली और कड़वाहट को कम करने के मकसद से इंदिरा और भुट्टो ने एक मंच पर आने का फैसला किया। 23 अप्रैल 1972 को पाकिस्तान के मरी में हुई दूतस्तरीय-वार्ता में शिखर-वार्ता के लिए शिमला की हसीनवादियों को चुना गया।

शिमला समझौता एक मिल का पत्थर साबित होने वाला था। भारत-पाकिस्तान के बीच शिखर-वार्ता 28 जून से 1 जुलाई तक तय की गयी। चार दिन तक चलने वाली इस वार्ता में सात दौर की वार्ता होनी थी। 28 जून 1972 के समाचार-पत्र हिन्दुस्तान के मुताबिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाली शिखर-वार्ता के लिए 27 जून को ही शिमला पहुंच गयी। चंडीगढ़ में मौसम खराब होने की वजह से इंदिरा चार घंटे विलम्ब से शिमला पहुंची। शिमला में प्रधानमंत्री इंदिरा ने शिखर-वार्ता की तैयारियों और व्यवस्थाओँ का जायजा स्वयं ही लिया। इस अवसर पर इंदिरा ने पत्रकारों से कहा कि शिखर वार्ता पाकिस्तान के लिए शत्रुता भुलाकर नई शुरुआत करने का अवसर है।

28 जून को ही पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ वार्ता के लिए शिमला पहुंचे। 29 जून को हिन्दुस्तान अखबार ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के स्वागत की खबर पर लिखा- अनेक वर्षों के कटु संबंधों के बाद आज हरी-मरी घाटी में उस समय भारत-पाकिस्तान के राष्ट्रीय गीतों की धुन एक साथ गुंज उठी जब शिखर वार्तो के लिए पाकिस्तानी राष्ट्रपति श्री जुल्फिकार अली भुट्टो यहां पहुंचे।

28 जून को भारत-पाक संबंधों में नए युग की कामना के साथ शिखर वार्ता शुरु हुई। दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच पहले दौर की बातचीत करीब एक घंटे तक चली। देर रात संयुक्त वक्तव्य में बताया गया कि शिखर-वार्तो सद्वभावना और रचनात्मक माहौल में शुरु हुई है। लेकिन अगले ही दिन खबरे सामने आने लगी की प्राथमिक महत्व के विचारणीय मुद्दों के प्रश्न पर भारत-पाक शिखर वार्ता नाजूक दौर में पहुंच गयी है। वार्ता की रफ्तार धीमी पड़ने लगी। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के महानिदेशक डॉ एमए भट्टी ने 29 जून की शाम पत्रकारों को बताया कि वार्ता प्रगति कर रही है लेकिन उसकी गति बहुत धीमी है।

29 जून को इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टों के बीच कश्मीर और युद्धबंदियों की रिहाई जैसे विवादित मुद्दों पर विचार-विमर्श भी हुआ। लेकिन भारत-पाक के बीच अहम मुद्दों पर विवाद बना रहा। इसके लिए पाकिस्तान की हठधर्मी ही मुख्य रूप से जिम्मेदार थी। बातचीत का ये सिलसिल टूटता और बनता रहा। 30 जून को दोनों देशों के प्रतिनिधियों की बैठक में विशेष रूप से कश्मीर पर गतिरोध पैदा हुआ और बातचीत टूटने के कगार पर पहुंच गयी। राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ भारत आए पाकिस्तानी पत्रकारों से इंदिरा ने खास इंटरव्यू में कहा हम कुछ ऐसा सिलसिला यहां भी शुरु करें. जो इतनी आवाम यहां है और सदियों से दबी रही है, गरीब रही है। तो इनको मौका मिले नई जिंदगी का। तो उसके लिए ज़रूरी हो जाता है कि आपसी झगड़े खत्म हों।

दोनों देशो के बीच पाकिस्तान द्वारा बंगलादेश को मान्यता, भारत-पाकिस्तान के राजनयिक संबंध, व्यापार, कश्मीर में नियंत्रण रेखा स्थापित करना और युद्धबंदियों की रिहाई जैसे मुद्दों पर बातचीत चलती रही। लेकिन कुछ मुद्दों पर एक राय नहीं बन पा रही थी। आखिरकार 30 जून को इंदिरा और भुट्टो ने शिखर-वार्ता को सफल बनाने के इरादे से निजी बातचीत की। 1 जुलाई को हिन्दुस्तान अखबार ने लिखा- भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति श्री भुट्टो के बीच आज यहां 40 मिनट तक निजी बातचीत हुई। जिसके फलस्वरुप भारत उपमहाद्विप में स्थायी शांति के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच हो रही शिखर-वार्ता की सफलता की अब आशा होने लगी है। दोनो देश समझौते के एक मसौदे पर विचार कर रहे है।

1 जुलाई को इन्दिरा-भुट्टो को बातचीत के अंजाम देने के लिए फिर एक मेज पर आमने-सामने बैठे। लेकिन इस बार भी कश्मीर और युद्धबंदियों के मसले पर दोनों देशों के बीच विवाद बना रहा। इसके बाद भुट्टो ने एक प्रेस-वार्ता बुलाई। जिसमें भुट्टों ने कहा मैं आपसे कहना चाहता हूं कि कुछ सफलता के साथ कुछ उम्मीद बची है। ये आज शाम को हुई मीटिंग का सार है। वहीं दूसरी तरफ इंदिरा ने भी उम्मीद जाहिर करते हुए पत्रकारों से कहा कि भारत-पाकिस्तान शिखर वार्ता में कुछ विशेष निश्चित परिणाम उभर कर नहीं आ सके हैं पर अंतिम परिणाम के प्रति मैं निराशावादी नहीं हूं।

1 जुलाई की बातचीत भी बेनतीजा रही थी। असफल वार्ता और डिनर के बाद सभी सोने चले गए। लेकिन जुल्फिकार अली भुट्टों बैचेन थे। वे आधी रात को इंदिरा के कमरे में गए। और इंदिरा से कहा कि वे अपने वतन खाली हाथ नहीं लौटना चाहते। उन्होंने इंदिरा से गुजारिश की कि भारत युद्ध में बंदी बनाय गए पाकिस्तानी सैनिको को छोड़ दे। बदले में इंदिरा ने भी शर्त रख दी कि पाकिस्तान एलओसी को इंटरनेशनल बॉर्डर मान ले। भुट्टो ने इंदिरा को भरोसा दिलाया और लौट गए.
दोनों देशो के प्रतिनिधी और पत्रकार किसी समझौते की उम्मीद छोड़ चुके थे लेकिन अगली दिन फिर 2 जुलाई को  दोनों पक्षों में बातचीत हुई। आखिरकार 2 और 3 जुलाई की रात 12 बजकर 40 मिनट पर दोनों देशों ने समझौता पर हस्ताक्षर कर दिए। शिमला समझौते में दोनों देशों ने महत्वपूर्ण बातों पर सहमति जाहिर की थी।
शिमला समझौते में कई महत्वपूर्ण बातें कही गयी थी। भारत-पाक इस बात पर राज़ी हुए थे कि दोनों पक्ष सभी विवादों और समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान बातचीत से करेंगे। स्थिति में एकतरफा कार्यवाही करके कोई परिवर्तन नहीं करेंगे। एक दूसरे के विरुद्घ बल प्रयोग नहीं किया जाएगा। एक दूसरे की राजनीतिक स्वतंत्रता में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे। कश्मीर सहित जितने भी विवाद हैं, उनका समाधान आपसी बातचीत से ही किया जाएगा और उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाया जाएगा।
इस समझौते में भारत-पाकिस्तान ने तय किया कि 17 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तानी सेनाओं के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की सेनायें जिस स्थिति में थीं, उस रेखा कोवास्तविक नियंत्रण रेखामाना जाएगा और कोई भी पक्ष अपनी ओर से इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेगा। शिमला समझौते के बाद नियंत्रण रेखा को बहाल किया गया। लेकिन पाकिस्तान अपने इस वाएदे को कभी नहीं पूरा किया।
शिमला में हुए समझौते के बाद भारत ने 93 हजार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा कर दिया और पाकिस्तानी जमीन भी वापस कर दी। इसके अलावा शिमला समझौते में दोनों देशों के बीच आवागमन की सुविधाएं, व्यापार, आर्थिक सहयोग और राजनयिक संबंधों पर भी सहमति बनी।
वहीं भारत में शिमला समझौते का विरोध किया जा रहा था। भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी के नेता प्रताप केसरी देव और कांग्रेस के नेता मोरारजी देसाई ने भारतीय कब्जे में आए इलाकों को लौटाए जाने का विरोध किया। लेकिन शिमला समझौते का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि कश्मीर विवाद को अंतरराष्ट्रीय रूप न देकर आपसी बातचीत से सुलझाने का वचन दिया गया था।
शिमला समझौते के 41 साल के सफर में पाकिस्तान ने कई बार अपने वचनों को तोड़ा है। कारगिल, सीमा उल्लंघन के मामले, आतंकी कैंप जैसी मिसाले शिमला समझौते के औचित्य पर सवाल खड़ा करती हैं।
 बॉक्स के लिए
दिसंबर 1970 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए थे। इस चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग ने 169 में से 167 सीटों पर जीत दर्ज की. इस जीत के बाद राष्ट्रपति याह्या खां ने आवामी लीग को सत्ता सौंपने से इंनकार कर दिया। 7 मार्च 1971 को आवामी लीग के नेता बंगबंधु मुजीबुर्रहमान ने पश्चिमी पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ बगावत कर दी। बंगबंधु की नेतृत्व में बांग्लादेश की आजादी की मांग उठने लगी। राष्ट्रपति याह्या खान ने आंदोलन को कुचलने के लिए 25 मार्च 1971 को सैनिक कार्रवाई के आदेश दे दिए। सैनिक कार्रवाई में करीब 3 लाख बांग्लादेशी मारे गए।

पूर्वी पाकिस्तान के राजनैतिक संकट का असर भारत पर भी पड़ा। पूर्वी पाकिस्तान की आवाम भारत की ओर भागने लगी। देखते ही देखते भारत में शरणार्थियों की संख्या एक करोड़ से ऊपर पहुंच गयी। इंदिरा ने पूर्वी पाकिस्तान से आ रहे शरणार्थियों की मदद के लिए भारतीय सीमा खोल दी। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान और शरणार्थियों की समस्या को विदेशी मंचों पर भी उठाना शुरु किया। साथ ही बंगलादेश आंदोलन को समर्थन देने की घोषणा कर दी। इससे बौखला कर पाकिस्तान की सेना ने भारत की पश्चिमी सीमा पर हवाई हमला कर दिया। करीब 15 दिन तक चले युद्ध में पाकिस्तान को करारी हार मिली और उसके 93 हजार सैनिकों को बंदी बना लिया गया। पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान की जगह जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति बने और उन्होंने इंदिरा के सामने शांति-वार्ता का प्रस्ताव रखा। जिसे इंदिरा ने स्वीकार कर लिया। यहीं शांति-प्रस्ताव शिमला समझौते के रुप में सामने आया।


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