सोमवार, 7 सितंबर 2009

आरूषि की पटकथा

नोएडा के चर्चित आरूषि और हेमराज हत्याकांड का मामला अपराध और जासूसी फिल्म की कहानी की तरह है। दर्शक कुछ समझ पाएं इससे पहले ही कहानी में एक नया मोड़ आ जाता है। आरूशि मामले का अपराधी चतुर है। तहकीकात करने वालो को गुमराह करने में माहिर है। बिल्कुल फिल्मों की तरह वर्दीवाले गुमनाम अपराधी से मिले हुए है। यकीनन तभी जांच के लिए भेजे गए आरूषि के स्वैब के नमूने बदल दिए जाते हैं। दरअसल कोई चाहता ही नहीं कि इस कहानी का पटाक्षेप हो। शायद इसलिए आरूषि के शव के डीएनए सेंपल लेने से पहले ही अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी कर दी जाती है। एक आप पाठक को भी समझ आता है कि आरूशि हत्याकांड को सुलझाने का ड्रामा चल रहा है। पुलिस और सीबीआई शक की बुनियाद पर कभी आरूषि के पिता राजेश तलवार को पकड़ लेती है तो कभी उनके कम्पाउडर कृश्णा और नौकर को दबोच लेती है। गहन पूछताछ होती। आधुनिक अपराधों को आधुनिक तरीकों से सुलझाने के लिए आधुनिक तकनीके अपनाएं जाती हैं। नार्को टेस्ट, ब्रेन मैंपिग और लाई डिटेक्टर परीक्षण करवाएं जाते है। फिल्म की पटकक्षा में रहस्य बरकरार है।
आरूशि हत्याकांड के मामले मे खबरों की दुनिया में बिकने के लिए सारे तथ्य मौजूद हैं- मसलन् मर्डर-बलात्कार, सबूतों के साथ छेड़छाड़, रहस्य, गुमनाम अपराधी और अंधेरे में जाने अनजाने तीर छोड़ती पुलिस-सीबीआई।
मौत से पहले आरूशि बदनाम ना थी। वे सिर्फ गुमनाम थी। उसकी मौत की गुत्थी सुलझाने वालों ने आरूषि मामले का छिछालेदर किया है। शायद एक दिन आरूशि बोल उठे कि ´´उसकी हत्या को असुलझा ही छोड़ फाइल को हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दो´´। इस देश में ऐसी और भी मामले और कहानियां होंगी जो आज तक अनसुलझी ही रहीं हैं। दर्शकों के लिए अपराधिक फिल्म का अंत वैसा नहीं होता जैसा उन्होंने सोचा था। आरूषि-हेमराज हत्याकांड के साथ भी शायद ऐसा ही हो।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा रहे हैं..सब देख सुन व्यवस्था पर अफसोस होता है.

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  2. आरुषि के हत्यारे से ज़्यादा बड़ी अपराधी तो हमारी यह व्यवस्था है. उससे पहले निठारी कांड आप क्यों भूल रहे हैं. आज तक उस मामले में भी क्या हो सका? हर मामले में कोई न कोई राजनेता टांग अड़ा ही देता है. और तो और, ये ख़ुद अपने हत्यारों के प्रति भी गम्भीर नहीं हैं. फूलन देवी के हत्यारों का क्या हो सका? अफ़ज़ल गुरु अभी तक मलाई काट रहा है. हर मामले की यहां अंतत: होती है सिर्फ लीपापोती. यही बात इस मामले में भी हो रही होगी.

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  3. जैसे की हम हैं हरेक बात पर राय रखते हैं। इस केस को लेकर भी मन में एक राय है कि ये एक ऑनर किंलिंग हो सकती है। फिर भी आपने सच कहा कि इस मामले में उतना ही पोटेन्शियल है जितना कि किसी भी मसाला फ़िल्म में होता है। हो सकता हैं एक आध ऐसी फ़िल्म आपको देखने के लिए भी मिल जाए।

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